25 अप्रैल 2011
नई दिल्ली। देश में अगले 10 वर्षो में करीब 40 करोड़ विद्यार्थियों के लिए 45,000 नए कॉलेजों की जरूरत होगी। लिहाजा शिक्षा का क्षेत्र न केवल निजी उद्यमों को आकर्षित कर रहा है, बल्कि यह निवेश के एक माकूल क्षेत्र के रूप में भी उभर रहा है।
परामर्शदात्री कम्पनी केपीएमजी के कार्यकारी निदेशक नारायणन रामास्वामी का कहना है, "शिक्षा को अब निवेश के लिए एक अति प्राथमिकता वाला क्षेत्र माना जा रहा है। प्रौद्योगिकी, आथित्य और वित्तीय सेवाएं जैसे क्षेत्र खासतौर से आकर्षक हैं। एक मात्र चिंता यह है कि इस क्षेत्र में होने वाले निवेश को वापस आने में कितना समय लगेगा।"
लम्बे समय से स्कूल और कॉलेज राज्य द्वारा संचालित और राज्य द्वारा वित्त पोषित संस्थानों, कल्याणकारी न्यासों, मिशनरियों के अधिकार क्षेत्र में रहे हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से प्रशिक्षण के क्षेत्र में बदलाव आया है, उसी तरह शिक्षा में भी अब बदलाव की पूरी सम्भावना है।
यदि एनआईआईटी, अपटेक, फ्रैंकलिन और राव स्टडी सर्किल प्रशिक्षण में धूम मचा रहे हैं, तो शिक्षा के क्षेत्र में भी अलोहा, एडिफी स्कूल, अबैकस और श्री श्री रवि शंकर बाल मंदिर जैसी संस्थाओं का विस्तार हो रहा है।
इस क्षेत्र में व्यापार की अपार सम्भावना है। एक प्रमुख उद्योगपति, जिसका परिवार गैर लाभकारी और निजी शैक्षिक संस्थान, दोनों का संचालन करता है, ने हाल ही में कहा था, "उच्च शिक्षा पर प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति पर मात्र 1,000 डॉलर के हिसाब से भी भारत में 2020 तक यह क्षेत्र 200 अरब डॉलर का बाजार बन जाएगा।"
एजुकेशन मीडिया एंड पब्लिशिंग ग्रुप इंटरनेशनल के अध्यक्ष बैरी ओकैलाघन ने कहा, "अन्य देशों में निजी क्षेत्र सरकार को मदद करने में एक अर्थपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में भी इस तरह का रुझान पैदा हो रहा है, जो अच्छी बात है।"
ओकैलाघन ने कहा, "शोध से पता चलता है कि शिक्षा क्षेत्र से बाजार को लाभ हो सकता है, क्योंकि यह एक उद्यम बन रहा है।" ओकैलाघन का समूह भारत और चीन में स्थानीय संस्थानों और उद्यमियों के साथ मिलकर शिक्षण सामग्री तैयार करता है और उसे वितरित करता है तथा सेवा कम्पनियां भी संचालित करता है।
फ्रेंचाइज इंडिया के अध्यक्ष गौरव मारिया के अनुसार शिक्षा व प्रशिक्षण का क्षेत्र अब कुछ समाजसेवियों तक अधिक समय तक सीमित नहीं रहने वाला है और अब यह क्षेत्र निजी निवेश आकर्षित कर रहा है।
मारिया ने कहा, "हम एक बुनियादी बदलाव देख रहे हैं। शिक्षा को अब एक अच्छे व्यापारिक अवसर के रूप में देखा जा रहा है। शिक्षा को उद्यम कहना कोई गलत नहीं है। निजी उद्यमियों का इस क्षेत्र में बहुत बड़ा हित है।"
केद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल (सीबीएसई) के पूर्व अध्यक्ष अशोक गांगुली कहते हैं, "शिक्षा क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं में एक चौड़ी खाई है। शहरी इलाकों में स्कूलों की भरमार है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में हमें अच्छे संस्थान नहीं दिखाई देते। सरकार को यह खाई पाटनी होगी।" उन्होंने कहा कि ऐसा होने के बाद ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम अपने अपेक्षित लक्ष्य को हासिल कर सकेगा और देश भर में साक्षरता हो पाएगी।
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